बोलता है उदास सन्नाटा
>> Sunday, 10 July 2011
बोलता है उदास सन्नाटा
- कुमार शिव
बंद कमरे की खिड़कियाँ कर दो
शाम से तेज चल रही है हवा
ये जो पसरा हुआ है कमरे में
कुछ गलतफहमियों का अजगर है
ख्वाहिशें हैं अधूरी बरसों की
हौसलों पर टिका मुकद्दर है
रात की सुरमई उदासी में
ठीक से देख मैं नहीं पाया
गेसुओं से ढका हुआ चेहरा
आओ इस काँपते अँधेरे में
गर्म कहवा कपों में भर लें हम
मास्क चेहरों के मेज पर रख दें
महकती हैं बड़ी बड़ी आँखें
हिल रहे हैं कनेर होटो के
बोलता है उदास सन्नाटा
8 comments:
बहुत सुन्दर, बेहतरीन!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार.
बहुत सुन्दर रचना ..आभार
कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
सचमुच, कभी कभी सन्नाटा भी बोलने लगता है।
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स्तब्धता का शोर कह दें इसे।
बहुत सुन्दर गीत !
इक अजब सी कशिश है कविता में ..
आज यह क्या हुआ. उपरोक्त ब्लॉग की उपरोक्त पोस्ट का लिंक क्यों नहीं दिख रहा है.
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