हरा बाँस वन
>> Saturday, 2 July 2011
'कविता'
हरा बाँस वन
मैं ने देखा है
पहाड़ों को पक्षियों की तरह उड़ते हुए
और भीड़ पर धमाधम गिरते हुए
जब चलती है काली आंधी
एक साथ उड़ते हैं पहाड़
रेगिस्तान बन जाते हैं शहर
चलने लगते हैं दरख़्त एक दूसरे की शाखें पकड़े
तेजी से दौड़ती हैं काँटेदार झाड़ियाँ
अचानक उठ खड़ी होती है
लेटी हुई नदी
बिखर जाती हैं उस की खुली लटें
बाँस वन की भुजाओँ पर
लटका देता है
मृत देहों के चिथड़े
बाँसों पर
धीरे धीरे हरा बाँस वन
नदी के लाल पानी में डूबने लगता है
- कुमार शिव
2 comments:
अचानक उठ खड़ी होती है
लेटी हुई नदी
बिखर जाती हैं उस की खुली लटें
बाँस वन की भुजाओँ पर
गहरी संवेदना को समाहित किये हुए पंक्तियाँ है|
सुन्दर कविता |
बहुत गहरी संवेदनाओं से परिपूर्ण अभिव्यक्ति. श्री कुमार शिव की रचना से रूबरू करवाने के लिए आपका भी गुरुवर जी आभार .
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