चेहरे बदल के मिलता है
>> Tuesday, 11 October 2011
'ग़ज़ल'
चेहरे बदल के मिलता है
चेहरे बदल के मिलता है
रहता है चुप्पियाँ साधे बेहद संभल के मिलता है
ये वक्त आजकल हम से चेहरे बदल के मिलता है
उस को फिजूल लोगों से फुरसत नहीं है मिलने की
पर जिन से उस का मतलब है बाहर निकल के मिलता है
ये है जो चांद पूनम का चांदी का एक सिक्का है
होता है जब मेहरबाँ ये हम से उछल के मिलता है
चेहरा तो इस हुकूमत का रहता है धूप में लेकिन
इक अजनबी सा अंधियारा पीछे महल के मिलता है
चाहे हो आईने जैसा दरिया का ऊपरी पानी
कीचड़ का गंदला चेहरा नीचे कमल के मिलता है
... कुमार शिव
6 comments:
मौजूदा वक्त पर लिखी बेहतरीन ग़ज़ल है।
जन्म दिन पर प्रणाम और हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत ही अच्छी।
श्रीमान कुमार शिव जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये और बधाई. आपकी उपरोक्त रचना बहुत अच्छी है. आपके इस ब्लॉग पर काफी दिनों बाद पोस्ट आई है.
bahut sundar panktiyan
बहुत खूबसूरत गज़ल
ठीक लगी…
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