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चेहरे बदल के मिलता है

>> Tuesday, 11 October 2011

'ग़ज़ल'


चेहरे बदल के मिलता है 



रहता है चुप्पियाँ साधे बेहद संभल के मिलता है
ये वक्त आजकल हम से चेहरे बदल के मिलता है

उस को फिजूल लोगों से फुरसत नहीं है मिलने की
पर जिन से उस का मतलब है बाहर निकल के मिलता है

ये है जो चांद पूनम का चांदी का एक सिक्का है
होता है जब मेहरबाँ ये हम से उछल के मिलता है

चेहरा तो इस हुकूमत का रहता है धूप में लेकिन
इक अजनबी सा अंधियारा पीछे महल के मिलता है

चाहे हो आईने जैसा दरिया का ऊपरी पानी 
कीचड़ का गंदला चेहरा नीचे कमल के मिलता है


                                                                                                                 ... कुमार शिव 


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