>> Wednesday, 27 July 2011
'ग़ज़ल'
दर्द कई चेहरे के पीछे थे
- कुमार 'शिव'
शज़र हरे कोहरे के पीछे थे
दर्द कई चेहरे के पीछे थे
बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई कमरे के पीछे थे
घुड़सवार दिन था आगे और हम
अनजाने खतरे के पीछे थे
धूप, छाँव, बादल, बारिश, बिजली
सतरंगे गजरे के पीछे थे
नहीं मयस्सर था दीदार हमें
चांद, आप पहरे के पीछे थे
काश्तकार बेबस था, क्या करता
जमींदार खसरे के पीछे थे